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दीपावली: अंधकार से प्रकाश की ओर जाने वाला भारतीय उत्सव

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दीपावली का अर्थ

दीपावली का अर्थ (सोशल मीडिया से)

दीपावली का अर्थ

दीपावली का अर्थ: भारत में कोई भी त्योहार केवल तिथि या पूजा का आयोजन नहीं होता, बल्कि यह संस्कृति के गहरे अर्थों को पुनः जीवित करने का समय होता है। दीपावली, जिसे दीपोत्सव भी कहा जाता है, एक ऐसा पर्व है जो बाहरी दीपों की रोशनी के साथ-साथ आंतरिक चेतना को भी जगाता है। यह उत्सव भारत की सांस्कृतिक एकता, सौंदर्य और सामूहिक स्मृति का प्रतीक है।


अंधकार से प्रकाश की ओर

दीपावली का इतिहास भारत की सभ्यता के साथ जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह दिन भगवान राम के चौदह वर्षों के वनवास के बाद लंका पर विजय और उनके राज्याभिषेक का प्रतीक है। जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे, तब वहां के निवासियों ने उनके स्वागत में लाखों दीप जलाए।


दीपावली का संदेश

“तमसो मा ज्योतिर्गमय” (अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल) — उपनिषद का यह वाक्य दीपावली का सार है।

इस दिन भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध किया और लक्ष्मी जी का प्रकट होना भी इसी दिन माना जाता है। जैन परंपरा में इसे भगवान महावीर के निर्वाण के दिन के रूप में मनाया जाता है। सिख धर्म में इसे बंदी-छोड़ दिवस कहा जाता है, जब गुरु हरगोविंद साहिब को कारावास से मुक्त किया गया। दक्षिण भारत में यह दिन कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की स्मृति में मनाया जाता है। इस प्रकार, दीपावली केवल एक कथा नहीं, बल्कि विभिन्न धर्मों के बीच आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है।


दीपावली का महत्व

शास्त्रों में दीपोत्सव को ‘दीपमालिका’ और ‘दीपोत्सव’ कहा गया है। स्कंद पुराण में उल्लेख है —

“कार्तिकामासे तु अमावास्यायां दीपदानं शुभं भवेत्।”

अर्थात कार्तिक अमावस्या को दीपदान अत्यंत शुभ फल देने वाला होता है।

एक अन्य श्लोक में कहा गया है —

“दीपो भयं हरत्येव, दीपो दारिद्र्यमाश्रितम्।

दीपो रोगं हरत्येव, तस्माद् दीपं प्रदीपयेत्॥”

— अर्थात दीप भय, दरिद्रता और रोग—तीनों को हर लेता है, इसलिए दीप अवश्य जलाना चाहिए।


सांस्कृतिक विशेषताएँ

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दीपावली का उत्सव पाँच दिनों तक चलता है—

पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन नरक चतुर्दशी, तीसरे दिन लक्ष्मी पूजन, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भाई दूज मनाई जाती है। हर दिन का एक विशेष अर्थ है—संपत्ति, शुद्धि, श्रद्धा, प्रकृति-प्रेम और संबंध। यह श्रृंखला जीवन के चक्र का दार्शनिक रूपक है।


साहित्य में दीपावली

संस्कृत और हिंदी साहित्य में दीपावली पर कई काव्य रचनाएँ हैं। आचार्य हरिऔध ने लिखा था—

“दीप जलाओ, दीप जलाओ, शुभ्र भाव के दीप जलाओ।

मन के तम को दूर भगाओ, स्वार्थ-लोभ को दूर हटाओ।”

जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ में भी दीप का प्रतीक बार-बार आता है—

“प्रकाश में सब कुछ है, पर प्रकाश का अपना मूल्य है।”

इन कविताओं में दीप का अर्थ केवल लौ नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति है।


दार्शनिक दृष्टिकोण

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दीप की लौ त्रिवेणी है—तेल साधना का प्रतीक, बाती तपस्या का और प्रकाश ज्ञान का।

इसलिए कहा गया —

“यत्र दीपः सदा तिष्ठेत्, तत्र देवाः सदा वसन्ति।” (जहाँ दीप रहता है, वहाँ देवता निवास करते हैं।)

दीपावली का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि प्रगति का अर्थ केवल बाहरी चमक नहीं, बल्कि आंतरिक उजाला है। जब हम दीप जलाते हैं, तो वह लौ हमारे भीतर के अंधकार को मिटाने का प्रतीक बनती है।


दीपावली का सामूहिक उत्सव

दीपावली केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक दृष्टि है — “अंधकार पर विजय की।” यह बताता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ हों, प्रकाश की एक छोटी-सी लौ भी अंधकार को परास्त कर सकती है। जब दीप जलते हैं, तो पूरा भारत अपनी आत्मा के प्रकाश में नहा उठता है।

“दीपज्योतिर्नमस्तुभ्यं, दीपे देवः नमोऽस्तु ते।”

यह श्लोक केवल दीप की नहीं, मानव-चेतना की वंदना है। दीपावली इसलिए केवल रोशनी का नहीं, बल्कि संवेदना, समरसता और आत्म-प्रकाश का उत्सव है।


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